Wednesday, April 24, 2019

Uddan - उड्डान ( IBM poetry competition winning poem)


उड्डान  ( IBM poetry competition winning poem)

ऊपर  गगन  विशाल  और  मन  में  गगन  को  छुने की   चाहत  रखता  हूँ,
मेरी  मंजिल  है  बहुत  दूर  और  खुद्द  के  पंख   दुर्बल  पाता  हूँ,
पर  गगन  को  छुने  का  जीवन  में  एक  लक्ष  रखता  हूँ,
और  मै भी  मै  ही  हूँ , जो  कभी  जीवन  में  हर  नही  मानता हूँ,

एक  नए  इरादे  के  साथ  आकाश  में  उड्डान  करता  हूँ,
पर  पंख  दुर्बल  होने  के  कारन  फिर  से  जमीन  पर  गिरता  हूँ,
शरीर  से  छिन्न-भिन्न  और मन  से  घायल  हो  जाता  हूँ,
पर  गगन  को  छुने  की  चाहत  कम    होने  देता  हूँ,
और  मै भी  मै  ही  हूँ , जो  कभी  जीवन  में  हर  नही  मानता हूँ,

इसिलिये  हर बार  पहलेसे  ज्यादा  ऊँची  उड्डान  भरता  हूँ,
हर  बार  पहलेसे  ज्यादा  ऊंचाई  से  जमीन  पर  गिरता  हूँ
( पहलेसे ज्यादा  ऊंचाई  से  गिराने  के  कारन ) हर  बार पहलेसे ज्यादा  चोट  पाता  हूँ,
पर  मै भी  मै  ही  हूँ , जो  कभी  जीवन  में  हर  नही  मानता हूँ,
और फिर  से  एक  नई  प्रेरणा  भरकर  (एक  नए  इरादे  के  साथ)  आकाश  मे उड्डान करता  हूँ

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